पिछली 27 जनवरी से मेरे गाँव हरनावदा में करीब 15 लाख रुपयों के बजट से एक महायज्ञ हो रहा है । जब मैं 1992 में जे एन यू से गाँव आया था तो मैंने योजना बनाई थी की अपने गाँव में विकास के कुछ काम करूंगा। किन्तु गाँव के लोगों ने रूचि नहीं ली। पैसा इकट्ठा नहीं हुआ। पर आज देखता हूँ की धर्मं के नाम पर १५-२० लाख फूंके जा रहे हैं। मठाधीशों के बहकावे में युवा पीठी और पूरा गाँव गाढ़ी कमाई के पैसे लगाने को तैयार है। उन्हें विश्वास है की पुण्य मिलेगा, ईश्वर के दर्शन मिलेंगे। पता नहीं गाँव वालों को क्या मिलेगा। पर पंडितों, पुजारियों, साधुओं और मठाधीशों को अच्छा पैसा मिलेगा। आम की ढेरों लकड़ी फूंकी जाएगी। १० दिनों तक कामकाज ठप्प रहेगा। युवा शक्ति को जीवनभर धर्म की झूठी दुनिया में जीने की प्रेरणा मिलेगी। --- बहरहाल एक कविता श्रंखला ईश्वर को लेकर मैंने लिखी थी। उसकी एक कविता यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ। 'ईश्वर आये तो---'। मुलाहिजा फरमाइए।
ईश्वर आये तो---
बहुत कुछ इकठ्ठा हो गया है
शिकवा शिकायत के लिए--
बस इन्तेजार है ईश्वर के आने का
---- जन्मने की पीड़ा -
पनपने का संघर्ष -
गृहस्थी का घर्षण -
जीने की तृष्णा -
हवा की दिशा -
प्रकाश की बदमाशी -
अँधेरे की सघनता -
आकाश की शून्यता -
पानी की आबहीनाता -
आत्मा की अनास्था -
खून की सफेदी ----
सुख की कंगाली में
की गयी बेचैन यात्राओं में
समेटे गए
अनावृत आत्माओं के
संस्मरण---
बहुत कुछ इकठ्ठा हो गया है
शिकवा शिकायत के लिए
ईश्वर आये तो -----
- अमी चरण सिंह
आप इस कविता का पाठ करें तब तक मैं अपने घर के, गाँव वालों के बुलावे पर महायज्ञ में चक्कर लगाकर आता हूँ। यदि ईश्वर मिला तो अपनी सुनाने के लिए। लोटकर बताऊंगा की क्या बात हुई ईश्वर से।
Friday, January 29, 2010
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