भोपाल से प्रकाशित होनेवाली साहित्यिक पत्रिका ‘प्रेरणा ’ का नया अंक आया है । इसके संपादक हैं श्री अरुण तिवारी । अरुण जी अपने सतत प्रयासों से पिछले ११ सालों से इसका प्रकाशन जारी रखे हुए हैं । जाहिर है इस लम्बी अवधि में उनके सामने अनेक कठिनाइयां आई होंगी , पत्रिका बंद होकर चालू हुई होगी , लोग जुड़ते -टूटते -जुड़ते रहे होंगे । पर आज जिस मुकाम पर ‘प्रेरणा’ को अरुण जी ले आए हैं , वह कबीले तारीफ है । मैंने पिछले कुछ अंक देखे हैं । इसकी प्रष्ट संख्या अच्छी -खासी होती है , लगभग दो सौ के आस पास। सामग्री की विविधता सभी विधाओं की रूचि के पाठकों के लिए पर्याप्त खुराक देती है । कहा जा सकता है की यह हर संजीदा पाठकों के लिए जरूरी पत्रिका है ।
‘प्रेरणा ’ के ताजे अंक (जून जुलाई 2009) की चर्चा करें तो सभी विधाओं में ५८ रचनाकारों की दी गयी हैं । विधाओं का विभाजन करें तो ‘ बहस के लिए ’, स्मरण , आलेख , विमर्श , चिंतन , कहानी , लघुकथा , कविता , गजल , रपट , पुस्तक चर्चा , लघु /छोटी /साहित्यिक पत्रिकायों के अंकों की चर्चा के साथ ही पाठकों की लगभग समीक्षात्मक लम्बी चिट्ठियों को यहाँ पढ़ा जा सकता है । इस में साक्षात्कार नहीं है , किंतु ‘प्रेरणा ’ में अच्छे -खासे लंबे साक्षात्कार छपते रहें हैं , जैसे राजेश जोशी का चर्चित साक्षात्कार छपा था । बहारहल ‘प्रेरणा ’ का यह अंक पाठको को अच्छी खुराक देता है । ‘ प्रेरणा’ प्राप्त करने के लिए यहाँ संपर्क करें :
चींटियाँ निकलती है
-अमी चरणसिंह
चींटियाँ निकल जाती हैं
लम्बी यात्राओं पर
अक्सर
जाती हैं वे कहीं
उत्साह के साथ की
जा रही हों मानो
किसी तीर्थयात्रा पर
'हमेशा चलायमान रहना
सीखा जा सकता है
चींटियों से'
यह कथन बड़ा उपदेशक है
मगर क्या आपने कभी
किसी चींटी को
आराम फरमाते देखा है ?
वे तेजी से गुजरती हैं
कुछ इस व्यस्तता से
जिस रास्ते -गली से
डॉक्टर पुष्पिता अवस्थी की कविता 'पसीने का इतिहास' से :
सूरी नाम की पग्दंदियाँ
नहरों के पानी में
केशव शरण की कविता 'एक हलवाहे का हल चलाना देखकर' का अंश: