कि जो उड़ती है एक पतंग
आकाश में,
पहुँचने को आतुर
बादलों के पार।
कि जो उड़ती है एक पतंग
उड़कर वह पहुंचती है
बादलों के पार।
कि जो उड़ती है एक पतंग
और लोट आती है
बादलों के पार से ,
लेकर संदेश कि
पूर्वजों के पास अब भी है
कहने को कुछ शेष।
कि जो उड़ती है एक पतंग
वही अब
माध्यम है संवाद का
मेरे और
पूर्वजों के मध्य।
- अमी चरणसिंह
लिखी १२-१०- २००१ रात्रि १०:३४ पर
Saturday, October 31, 2009
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