Wednesday, May 26, 2010

अक्षय आमेरिया की कला : चेहरे के भीतर चेहरे...1

पिछले दिनों २३ मई से २५ मई तक उज्जैन के कालिदास अकादमी की कला दीर्घा में मेरे प्रिय कलाकार अक्षय आमेरिया के बनाए ६२ चेहरों की कला प्रदर्शनी आयोजित हुईइस एक्सिबिसन के मौके पर १६ लीफ याने पन्नों का एक फोल्डर जारी किया गयाइस फोल्डर पर मेरे द्वारा लिखी गयी टिप्पणी को छापा गया हैअक्षय ने ही इसे डिजाईन किया हैइसकी ख़ास खूबी ये है कि हर पेज एक स्वतंत्र लीफ है, और हर लीफ पर एक चेहरा छपा है जिसके पीछे वरिष्ठ कवी प्रमोद त्रिवेदी जी की कविता दी गयी हैये कुल १२ कवितायेँ है

इस फोल्डर पर दिए गए मेरे आलेख को येहाँ पोस्ट कर रहा हूँउसी के साथ प्रमोद त्रिवेदी जी की एक कविता भी पोस्ट कर रहा हूँ

प्रदर्शनी की एक खासियत और रही की इस मौके पर प्रयोग के तौर पर अक्षय के बनाये चेहरों को टी शर्ट भी डिस्प्ले किया गयाइससे अलग प्रभाव पड़ा

इस मौके पर उज्जैन रेंज के आई जी श्री पवन जैन ख़ास तौर पर हाजिर थेउन्होंने दूसरे अतिथियों के साथ मिलकर फोल्डर का अनावरण किया था

इस मौके पर खींचे गए कुछ फोटोग्राफ्स भी आप येहाँ देख सकते है

पहले फोल्डर पर दिया गया मेरा आलेख :::-


अक्षय के चहरे : भीतरी बैचेनी का बयान

समकालीन भारतीय कलाकारों में अपने अलग कला स्वभाव के कारण अक्षय आमेरिया कि कला ध्यान खींचती हैउनकी अमूर्त कलाकृतियाँ देखकर ऐसा लगता है मनो वे रंग के अधिक्य के भीतर सेंध लगाते हुए अलौकिक-अद्भुत संरचनात्मक संसार को गढ़ते हैंइस मायने में वे आकर का विरूपण करते हुए स्वतः-स्फूर्त अनगढ़ता के सौन्दय का व्याकरण रचनेवाले कलाकार ठहरते हैंदरअसल उनकी कला अंतर्लोक से उपजती है, जो वस्तुतः विचार की कला हैहाल ही में मानव चेहरों को लेकर रची गयी उनकी चित्र-शृंखला 'विचार कि कला' का अनुपम उदाहरण हैजहां हर कलाकृति 'विचार' को प्रकट करती हैचारकोल, ड्राय पेस्टल , पेन और इंक के समन्वय से पेपर पर रचे गए इन चित्रों का भौतिक आकार यद्यपि माध्यम है, किन्तु इनका प्रभाव व्यापक हैइस व्यापकता का आभास तब होता है जब इन्हें देखते हुए हम काफ्का और मुक्तिबोध के रचना संसार की उथल-पुथल भीतरी हलचल का बयान करते हैंइस अर्थ में ये आत्म-चेहरे (इनर फेस ) हैं, यानी कलाकार के आभ्यंतर-प्रदेश का बाह्य-रूपअक्षय संरचनात्मक इस्तर पर चीजों की अल्पता और विचार की बहुलता के चित्रकार रहे हैं, इसीलिये उनकी कला , गर्जन के बजाय धीमी में आत्म-रस की फुहार के साथ संवाद करने लगती हैसंवाद की यह कला ही नहीं, उनके व्यक्तित्व में भी घुली-मिली है। इसीलिए उनसे मिलाने-बतियाने में कलाकृति देखने-सा सुख मिलता है

-अमी चरणसिंह

१०--२०१०



प्रमोद त्रिवेदी जी की एक कविता :

ये यातना की भाषा के वर्णाक्षर हैं

एक महाप्रश्न ,

देख रहा है आपको कातर नजरों से

देख रहा है आपको,

और

आपको


मांग रहा है आपसे

अपने प्रश्न का जवाब

-प्रमोद त्रिवेदी, उज्जैन





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