(30-04-2018)
Monday, April 30, 2018
लघुकथा की 'कथा'
(30-04-2018)
Friday, September 30, 2011
अशोक भौमिक की नयी चित्र श्रुंखला : अन्जेल्स ऑफ़ दी स्ट्रीट
Friday, July 22, 2011
मकबूल फ़िदा हुसैन के कला व्यक्तित्व पर एक लेख
Monday, October 4, 2010
हिंदी के कंगाल कुढ़ मगज प्राध्यापक
पिछले दिनों प्राध्यापकीय साहित्य ज्ञान से अद्भुत तरीके का साक्षात्कार हुआ। मेरा अपने करियर के सिलसिले में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के एक अकादमिक स्टाफ कोलेज में हिंदी के कुछ कुढ़ मगज हिंदी प्राध्यापकों से सामना हुआ। यूँ पता था कि हिंदी का एक बहुत बड़ा वर्ग हिंदी साहित्य पढ़ता ही नहीं है.. पर इस बार ये भी पता चला कि हिंदी साहित्य को कुंजियों से पढ़नेवाला पढ़ानेवाला प्राध्यापक वर्ग हमारे देश में ज्ञानात्मक दुर्दशा के एक बड़े बुरे दौर से गुजर रहा है, ख़ास कर वो वर्ग जो अपने को वरिष्ठ कहलाता फिरता है और नारी विमर्ष के नाम पर राजेंद्र यादव, आलोचना पर नामवर सिंह और दलित विमर्ष के नाम पर पुरे हिंदी साहित्य को पारंपरिक गालियाँ देता है किन्तु साहित्य पढ़ता नहीं है।
कुछ प्राध्यापकीय ज्ञान के उदाहरण पेश कर रहा हूँ.... मुलाहिजा फरमाइए....
एक ने कहा उर्दू भाषा है ही नहीं। जो हिन्दुस्तान में बोली जाती है वो अरबी फारसी है और उर्दू उसकी लिपि है। इंदौर नगर के सफ़ेद बाल वाले इन प्राध्यापक महोदय ने १९६९ में पढ़ाना शुरू किया और आजकल सेवा निवृत्त हो चुके हैं। नाम है कोई यादव। यानी अपनी पूरी नौकरी के दौरान ये यही पढ़ाते रहे कि उर्दू लिपि है और हिन्दुस्तान और पाकिस्तान बंगलादेश में जो बोली जा रही उर्दू है वो फारसी है.... एक दूसरी मोहतरमा ने कहा कि हिंदी में नई कविता केवल कवियों कि हताशा, कुंठा, निराशा का परिणाम थी। और प्रयोगवाद ही प्रगतिवाद था। हिंदी की एक लेखिका कहलाने के लिए बेचैन प्राध्यापिका महोदया ने कह डाला कि खेल के अनुवाद के लिए देवनागरी वर्तनी में अंगरेजी के शब्द को स्पोर्ट्स लिखा जाता है। पाठक यहाँ देख सकते हैं कि खेल का अंगरेजी अनुवाद देवनागरी वर्तनी में यूनिकोड भाषा में लिखने पर वर्तनी दोष आ जाता है। पर इससे हिंदी का मानकीकृत रूप नहीं बदला जा सकता.... इस तरह कई बातों में लगा कि हिंदी कि रोटी खाने वाले प्राध्यापकों का एक ऐसा वर्ग है जो हिंदी साहित्य का किताबी ज्ञान रखता है, भ्रमपूर्ण ज्ञान रखता है, और वो ही हिंदी साहित्य का नुक्सान कर रहा है... एक मजेदार बात और हुई, वो ये कि हिंदी का प्राध्यापक हिंदी साहित्य कि पत्रिकाएं लगभग नहीं खरीदता... केवल हंस को गाली देता है, किन्तु उसे पता ही नहीं है कि वागर्थ या वसुधा या नया ज्ञानोदय या प्रेरणा या साक्षात्कार जैसी पत्रिकाएं भी है... समकालीन भारतीय साहित्य कहाँ से छपता है, या साहित्य अकादेमी भोपाल में है, तो दिल्ली में क्या है, पता नहीं... हिदी के कुढ़ मगज प्राध्यापकों पर क्या रोना रोया जाये... जितना रोना रोया जाए कम ही है....
- अमी चरणसिंह
४ अक्टूबर २०१०
Wednesday, May 26, 2010
अक्षय आमेरिया की कला : चेहरे के भीतर चेहरे ...2
इन फोटो में पहचानिए कौन कौन है... ?
अक्षय आमेरिया की कला : चेहरे के भीतर चेहरे...1
Wednesday, March 24, 2010
हूमड़ जैन समाज पर फिल्म : हम हूमड़
बहरहाल हूमड़ जैन समाज वाली फिल्म में आरम्भ में नमोकार मंत्र के कुछ अंश दिए थे... चूंकि ये फिल्म एक गैर-व्यावसायिक फिल्म थी इसलिए इस सुगम सुमधुर गीत ने फिल्म के आरंभ में एक अलग ही समा बाँध दिया था।
पाठकों को सुनने के लिए नामोकर मंत्र येहाँ दे रहा हूँ। ये मंत्र अनेक गायकों द्वारा गाया गया है। येहाँ आप लता जी की आवाज में नमोकार मंत्र सुनिए।
थोड़े दिनों बाद हूमड़ समाज की फिल्म के कुछ अंश आपको देखने के लिए दे सकूंगा.....
-अमी चरणसिंह २५ मार्च २०१०
बड़े गुलाम अली खान की ठुमरी
Friday, February 26, 2010
अक्षय अमेरिया की कला : एक
समकालीन भारतीय कला में युवा कलाकारों की उपस्थिति अपने ख़ास अंदाज में ध्यान खींचती है। इनमे कई कलाकार हैं जिनके काम पर बहुत लिखा और कहा गया है। कई के काम पर तो केवल यही लिखा और कहा गया है की उस कलाकार की पेंटिंग्स इतने में बिकी, इतने लाख में बिकी। मैं यहाँ उसकी बात नहीं कर रहा हूँ। रेट -लिस्ट देने का काम करना भी मेरा मकसद नहीं है। हाँ कला पर कुछ-कुछ बतियाने की इच्छा है। यहाँ अपने कुछ पसंदीदा कलाकारों पर ही नहीं, कला की पसंदीदी 'कारगुजारियों' पर भी कुछ लिखने की कौशिश करूंगा।
सबसे पहले , शुरुआत कर रहा हूँ अक्षय अमेरिया से। उज्जैन निवासी अक्षय अमेरिया मेरे प्रिय कलाकार रहे हैं। तो सबसे पहले अक्षय अमेरिया की कला के बारे में चर्चा। उनकी कला पर मैंने चार-पांच बार लिखा है। उसमे से एक लेख 'महातल में मौन चांदनी' यहाँ दे रहा हूँ। ये लेख लखनऊ से प्रकाशित होनेवाली कला पत्रिका 'कलादीर्घा' , संपादक अवधेश मिश्र के १९ वे अंक अक्टूबर २००९ में छापा था। 'कलादीर्घा' प्राप्त करने के लिए संपर्क यहाँ कर सकते हैं : अंजू सिन्हा , १/९५, विनीत खंड, गोमती नगर, लखनऊ-२२६ ०१०। इन्टरनेट पर देखने के लिए लोग ओन करें : डब्लू डब्लू डब्लू .कलादीर्घा.कॉम। कलादीर्घा के आवरण का फोटो भी साथ में दे रहा हूँ। पढ़ें और अपनी टिपण्णी दें, लेखन पर और अक्षय की कला पर भी।
- अमी चरणसिंह
२७-२-२०१०, सुबह ९:२९ बजे
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