Saturday, October 31, 2009
कि जो उड़ती है एक पतंग
आकाश में,
पहुँचने को आतुर
बादलों के पार।
कि जो उड़ती है एक पतंग
उड़कर वह पहुंचती है
बादलों के पार।
कि जो उड़ती है एक पतंग
और लोट आती है
बादलों के पार से ,
लेकर संदेश कि
पूर्वजों के पास अब भी है
कहने को कुछ शेष।
कि जो उड़ती है एक पतंग
वही अब
माध्यम है संवाद का
मेरे और
पूर्वजों के मध्य।
- अमी चरणसिंह
लिखी १२-१०- २००१ रात्रि १०:३४ पर
Tuesday, July 14, 2009
‘प्रेरणा’ का जून - जुलाई २००९ अंक
भोपाल से प्रकाशित होनेवाली साहित्यिक पत्रिका ‘प्रेरणा ’ का नया अंक आया है । इसके संपादक हैं श्री अरुण तिवारी । अरुण जी अपने सतत प्रयासों से पिछले ११ सालों से इसका प्रकाशन जारी रखे हुए हैं । जाहिर है इस लम्बी अवधि में उनके सामने अनेक कठिनाइयां आई होंगी , पत्रिका बंद होकर चालू हुई होगी , लोग जुड़ते -टूटते -जुड़ते रहे होंगे । पर आज जिस मुकाम पर ‘प्रेरणा’ को अरुण जी ले आए हैं , वह कबीले तारीफ है । मैंने पिछले कुछ अंक देखे हैं । इसकी प्रष्ट संख्या अच्छी -खासी होती है , लगभग दो सौ के आस पास। सामग्री की विविधता सभी विधाओं की रूचि के पाठकों के लिए पर्याप्त खुराक देती है । कहा जा सकता है की यह हर संजीदा पाठकों के लिए जरूरी पत्रिका है ।
‘प्रेरणा ’ के ताजे अंक (जून जुलाई 2009) की चर्चा करें तो सभी विधाओं में ५८ रचनाकारों की दी गयी हैं । विधाओं का विभाजन करें तो ‘ बहस के लिए ’, स्मरण , आलेख , विमर्श , चिंतन , कहानी , लघुकथा , कविता , गजल , रपट , पुस्तक चर्चा , लघु /छोटी /साहित्यिक पत्रिकायों के अंकों की चर्चा के साथ ही पाठकों की लगभग समीक्षात्मक लम्बी चिट्ठियों को यहाँ पढ़ा जा सकता है । इस में साक्षात्कार नहीं है , किंतु ‘प्रेरणा ’ में अच्छे -खासे लंबे साक्षात्कार छपते रहें हैं , जैसे राजेश जोशी का चर्चित साक्षात्कार छपा था । बहारहल ‘प्रेरणा ’ का यह अंक पाठको को अच्छी खुराक देता है । ‘ प्रेरणा’ प्राप्त करने के लिए यहाँ संपर्क करें :
चींटियाँ निकलती है
-अमी चरणसिंह
चींटियाँ निकल जाती हैं
लम्बी यात्राओं पर
अक्सर
जाती हैं वे कहीं
उत्साह के साथ की
जा रही हों मानो
किसी तीर्थयात्रा पर
'हमेशा चलायमान रहना
सीखा जा सकता है
चींटियों से'
यह कथन बड़ा उपदेशक है
मगर क्या आपने कभी
किसी चींटी को
आराम फरमाते देखा है ?
वे तेजी से गुजरती हैं
कुछ इस व्यस्तता से
जिस रास्ते -गली से
डॉक्टर पुष्पिता अवस्थी की कविता 'पसीने का इतिहास' से :
सूरी नाम की पग्दंदियाँ
नहरों के पानी में
केशव शरण की कविता 'एक हलवाहे का हल चलाना देखकर' का अंश:
Monday, July 13, 2009
मधुबनी कलाकार यशोदा देवी
मधुबनी लोक कला की महान चितेरी यशोदा देवी
मित्रो,
मधुबनी कलाकार यशोदा देवी की कला से अमूमन हर कलाप्रेमी परिचित है। वे बिहार की प्रसिद्ध मधुबनी कला की महान कलाकार थीं। उन्हें काम करते हुए देखना निशिचित ही सुखद अनुभव होता था। सन २००७ में वे उज्जैन आईं थीं, कालिदास अकादमी के वर्नागम कला शिविर में शिरकत करने हेतु। मेरे मित्र और कलाकार आर पी शर्मा ने अकादमी के लिए शिविर की फ़िल्म बनाने का दायित्व तत्कालिन निदेशक डॉक्टर जगदीश शर्मा के मार्गदर्शन में मुझे दिया था। उस समय के नवागत निदेशक डॉक्टर मिथिलाप्रसाद त्रिपाठी ने भी उस फ़िल्म को पसंद किया था। उसी फ़िल्म का एक हिस्सा यहाँ दे रहा हूँ, जिसमें यशोदा जी हैं। यशोदा जी अब इस दुनिया में नहीं हैं, किंतु उनके पुत्र राजकुमार और पुत्रवधू विभा लाल उनकी कला को आगे बढ़ा रहे हैं। यशोदा जी को श्रद्धांजलि के साथ फ़िल्म के इस हिस्से को आप भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया दें। फ़िल्म के इस हिस्से की अवधि १ मिनट २ सेकंड है।
Wednesday, July 1, 2009
कविता की तलाश (मनोहर काजल के फोटोग्राफ को देखते हुए)
साथियों ,
मेरे प्रिय फोटोग्राफ़र श्री मनोहर काजल (दमोह) के फोटोग्राफों ने मुझे हमेशा प्रभावित किया है। उनका एक फोटोग्राफ भोपाल से प्रकाशित होनेवाली पत्रिका 'कला समय' के कवर पर छापा था। उसने मुझे बहुत आकर्षित किया। उसपर कविता लिखकर 'कला समय' के संपादक मित्र श्री विनय उपाध्याय को भेजी। उन्होंने उसे प्रकाशित कर दिया। आज उस कविता को पुनः पढ़ा। सो, वह कविता आपके लिए भी यहाँ दे रहा हूँ:-
कविता का शीर्षक है -
कविता की तलाश
(मनोहर काजल के फोटोग्राफ को देखते हुए)
कविता की तलाश
वहाँ ख़त्म नहीं होती
जहाँ
किसी राजकुमारी की भांति
सज संवरकर बार्बी गुडियाओं का मेला सजाती है
कोई माता पिता की दुलारी ।
कविता मिलती है
ढोलक की थाप पर
कंडे बीनते-बीनते
नृत्य करने के लिए उत्सुक
फटेहाल लड़की की
भदेस काया के इर्द-गिर्द ,
जहाँ चेहरे पर उतर आता है
सारा अवसाद जीवन का ।
वह एक कविता
वहाँ भी नहीं मिलती
जहाँ
ब्रेड पर लगा माखन पसंदीदा न होने पर
तूफ़ान खड़ा कर देता है लाडला ।
कविता मिलती है वहाँ जहाँ
फूस के घर के पिछवाडे
करतब दिखने की रियाज में
भूखे पेट
ढोलक पर
हाथ आजमा रहा होता है
सर पर बांधे पीढियों का बोझ
कोई अनपढ़ गंवई
नंगे पैरों वाला
'कलाकार लड़का' ।
- अमी चरण सिंह
(लिखी १२-१०-२००१)